जीवन की सही शिक्षा देते हैं ‘शिरोमणि’ रविदास के ये दोहे
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ऋषिकेश। रविदास को भक्ति आंदोलन के एक अग्रणी प्रवर्तक के रूप में देखा जाता है, जिनका जन्म 1376 ईसवीं में माघ मास की पूर्णिमा को गोवर्धनपुर गांव (वाराणसी) में हुआ था। उनके पिता संतोख दास पेशे से चर्मकार थे, और मां कर्मा बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। रविवार के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम रविदास रखा गया था। इस वर्ष यानि 2024 में 24 फरवरी के दिन रविदास जयंती का पर्व मनाया जा रहा है ।
संत रविदास का जन्म समाज के निम्न तबके से हुआ था लेकिन उनका जीवन इस बात का दर्शन है कि व्यक्ति अपने जन्म से नहीं अपने कर्म और गुणों से ही जान जाता है। संत शिरोमणि रविदास के देश-विदेश में बहुत से अनुयायी हैं जो उनके जयंती के अवसर पर गंगा स्नान करते हैं और उनकी शिक्षाओं को याद करते हैं।
#मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप
जिस व्यक्ति का मन निर्मल है, जिसके भीतर किसी के लिये भी बैर भाव या द्वेष नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो ऐसा मन ही भगवान के मंदिर के समान है, वही दीपक है और धूप है, ऐसे ही मन में ही ईश्वर निवास करते हैं।
#मन चंगा तो कठौती में गंगा
अगर व्यक्ति का मन चंगा है, तो उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (चमड़ा भिगोने के लिए पानी से भरे पात्र) में आ जाती हैं।
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