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November 18, 2025

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आज़ादी की ऐसी भूख कि जंग-ए-मैदान में भी नहीं टेके घुटने, झांसी की रानी को याद करने का दिन है आज

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ऋषिकेश। अगर भारत की सबसे लाड़ली बेटी का नाम लिया जाए तो वो है जंग-ए-आजादी की बहादुर बेटी रानी लक्ष्मीबाई (The Queen of Jhansi)। रानी लक्ष्मीबाई को झांसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है। रानी लक्ष्मी बाई की वीर गाथाएं आज भी हमारे दिल में जोश भर देती हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी…पढ़कर, सुनकर हम बड़े हुए हैं। सही मायनों में देखा जाए तो रानी लक्ष्मीबाई की कविता ज्यादातर विद्यार्थियों की पसंदीदा कविताओं में से एक रही। आज के दिन ही यानि 19 नवंबर 1828 को रानी लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ था। जी हां 19 नवंबर को भारत की सबसे लाड़ली बेटी की जन्म जयंती है। चलिए देश की बहादुर बेटी लक्ष्मीबाई की जन्म जंयती पर उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से जानते हैं।

 

हाथ में तलवार, घोड़े पर सवार, खून से लथपथ फिरगियों की लाशें, इसके बावजूद वो रुकने का नाम नहीं ले रही थी और अपने घोड़े को लगातार दौड़ाती जा रही थी लेकिन अचानक घोड़ा अनियंत्रित हो गया जिससे वो नीचे गिर पड़ी। गिरने के बावजूद उन्हें फिरगियों के सामने घुटने टेकना मंजूर नहीं था और वो दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए वीरगति का प्राप्त हो गई। जंग-ए-आजादी की बहादुर महिला झांसी की रानी यानी रानी लक्ष्मीबाई के अंदर देश को आजादी दिलाने की ऐसी भूख थी कि वो फिरगियों की एक झलक देखते ही गुस्से से तिलमिला जाती थी।

 

किस्सा है मार्च 1854 का जब रानी लक्ष्मीबाई से परेशान हुई ब्रिटिश सरकार ने झांसी की रानी को महल छोड़ने का आदेश दिया था, लेकिन इस आदेश के विपरीत रानी ने ये निश्चय किया कि वे किसी भी कीमत पर झांसी नहीं छोड़ेंगी। रानी ने संकल्प भी लिया कि वे हर हाल में झांसी को आजाद कराकर ही सुकून की सांस लेंगी। वीरता से वे आगे बढीं लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनके प्रयासों को विफल कर दिया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अपने पड़ोसी राज्यों की दुश्मनी से भी दो चार हो रही थीं। लेकिन वीरता और साहस के साथ वे इससे निपटती रहीं। 1857 में दोनों पड़ोसी राज्यों ने झांसी पर हमला बोल दिया। इसके बावजूद भारत की बहादुर बेटी ने अपनी सेना के साथ अकेले ही उनका सामना किया और उन्हें घुटने टेकने को मजबूर कर दिया।

 

1858 के इस किस्से के अनुसार, ब्रिटिश सरकार ने झांसी पर हमला बोलते हुए झांसी को चारों ओर से घेर लिया था, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने इस दौरान भी निडर होकर अंग्रेजों के आगे झुकना स्वीकार नहीं किया। इस दौरान पुरुष की पोशाक पहनी और अपने पुत्र को पीठ पर बांधकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग के मैदान में उतर गई। दोनों हाथों में तलवार लिए घोड़े पर सवार झांसी की रानी का ये चित्र देखकर आज भी लोग काफी हैरत में पड़ जाते हैं। हालांकि उस समय रानी को झांसी छोड़ना पड़ा। वे अपने दत्तक पुत्र और कुछ सहयोगियों के साथ वहां से निकल गईं और तांत्या टोपे से जा मिली।

तांत्या टोपे के साथ ग्वालियर कूच करने वाली रानी लक्ष्मी बाई (Rani Laxmi Bai) को 1858 में देश के गद्दारों और अंग्रेजों ने रास्ते में ही घेर लिया। इसके बाद रानी ने भी हार नहीं मानी और लगातार युद्ध करती रही। इस दौरान वो बुरी तरह से घायल हो गईं। 17 जून 1858 का युद्ध रानी लक्ष्मीबाई के जीवन का आखिरी दिन था। 18 जून 1858 को 30 साल की छोटी सी उम्र में आजादी की पहली भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना वीरगति को प्राप्त हो गईं।

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