मेयर शंभु पासवान की बढ़ीं मुश्किलें
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ऋषिकेश। नगर निगम ऋषिकेश के मेयर शंभु पासवान की मुश्किलें अब बढ़ती नजर आ रही हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट की जस्टिस रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ ने शंभु पासवान के जाति प्रमाण पत्र और चुनाव लड़ने की वैधानिकता पर उठे सवालों को गंभीरता से लेते हुए देहरादून के जिलाधिकारी को जांच कर फैसला लेने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि यह फैसला चार सप्ताह के भीतर लिया जाए।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि शंभु पासवान ने चुनाव के समय खुद को अनुसूचित जाति (SC) वर्ग का बताया था, जबकि अन्य दस्तावेज़ों और गतिविधियों में वे सामान्य वर्ग के रूप में दर्शाए गए हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की कि आधार और अन्य सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर उनकी संपूर्ण जांच की जाए।
मामले में एक और अहम पहलू यह है कि शंभु पासवान उत्तराखंड के मूल निवासी नहीं हैं। जानकारी के अनुसार, पासवान बिहार से उत्तराखंड आए थे, इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का एक पूर्व निर्णय भी सामने आया है, जिसमें कहा गया था कि एक राज्य का मूल निवासी न होने के बावजूद कोई व्यक्ति दूसरे राज्य में जाति प्रमाण पत्र के आधार पर न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकता है।
याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि यदि शंभु पासवान 1950 से पहले या उसी दौरान उत्तराखंड में निवास कर रहे होते, तो ही उन्हें यहां का मूल निवासी माना जा सकता है। जबकि प्रतिवादी पक्ष का कहना है कि वे मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं और बाद में यहां आकर बस गए।
इस संबंध में शंभु पासवान ने अपना पक्ष रखा है कि जो जमीन की मूल्य रजिस्ट्री है वह 2002 में हुआ था। उसमें साफ़ लिखा है कि उनका नाम शंभू पासवान है। इस जमीन को लेने के बाद जब उसे बेचा तो रजिस्ट्री करने वाले लोगों ने छपे हुए मैटर का इस्तेमाल करने के चलते गलत जाति लिख दिया। उन्होंने कहा कि बाकी सभी कागजों में उनका नाम शंभू पासवान ही चलता आ रहा है। रजिस्ट्री करने वालों से गलती हुई है। कि उन्होंने गलत छाप दिया है। ऐसे में लोग इसे राई का पहाड़ बनाने का काम कर रहे है। जबकि यह कोई मुद्दा बनाने वाली बात बनी नहीं है।
हाईकोर्ट ने यह आदेश 3 मार्च को पारित किया था। अब लगभग एक माह बीत चुका है, और सबकी नजरें डीएम के फैसले पर टिकी हुई हैं।
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